Sunday, January 22, 2012


वह तेरी याद ही थी जो मेरी रूह में बसती रही
वह मेरा इनकार ही था जो तेरे ज़ेहन में थमा रहा
तुझे रहा होश के मैंने क्या कही 
मुझे रहा इल्म के तू मेरा रहा 
वक़्त का दरिया बह कर भी थम सा गया
तेरे आने से यादों का ही मंज़र रहा

2 comments:

  1. Never realized you write in Hindi/ Urdu as well. look forward to more.

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  2. :D. I find that I write more casually in Hindi.

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