इक अरसे के बाद जो हुई कल
उनसे बात
यूँ लगा
मानो कल ही की थी वह
मुलाक़ात
कुछ
न बदला था,
थे वैसे ही हालत
कुछ
उन्होंने कही, और फिर से की
मैंने अनसुनी वह हर बात
एहसास
था मुझे, लेकिन कर न
सकी बयां वह बात
जाना जब
मैंने, यादों में गुज़रती है
उनकी हर रात
इस उम्मीद में
के ख्याबों में अब
भी होगी मुलाक़ात
वह यार
मेरा, वह बिछड़ा हमसफ़र
कैसे कहूँ ,
वह करता रहा सदा ख्याबों में बसर
उस
गली चले न थे फिर भी
उसी का रहा ज़िन्दगी पर असर