Sunday, November 4, 2012



ख्याल था वह इक हसीन सा
जो बिखर गया रेत सा
ख्वाब था वह जो कर गया बेचैन
न कर सकेगा कभी तू उसे हासिल
उसकी जुस्तजू में न हो बेचैन
वह जो हकीक़त है उसकी करले कदर
न बिखेर यूं अपनी ज़िन्दगी को
माला से टूटे मोतियों सा
बस ख्याल ही था वह हसीन सा
छूट गया पीछे जो इक अर्से पहले
उस राह के पेड़ों तले
बैठा न कर अब हो कर मायूस
होगा वहां ठंडी छाओं का एहसास
न होगा लेकिन फिर वही साथ
वह तो गुज़र गया रात के नींद सा
बस इक ख्याल था हसीन सा
उम्र गुज़ार ली तूने इंतजार में
क्या हुआ हासिल इस जुस्तजू में
कहीं दूर जब गूंजी किसी की हंसी
तेरे होटों पर भी मुस्कान खिली
न जाने क्यों ढूंढता रहा तू
औरों में अपनी ख़ुशी
जलता रहा दिए तले परवाना सा
बस ख्याल था वह हसीन सा
जो बिखर गया रेत सा